Tuesday, January 6, 2015

राजस्‍थानी लघु चित्रशैली/ MINIATURE PAINTINGS OF RAJASTHAN

राजस्थानी चित्रशैलियाँ

मरु प्रदेश  पूर्व काल मे राजपुताना कह्लाता था लेकिन कर्नल टाऍड ने इसे राजस्थान नाम दिया और पूर्व में राजपूताना में प्रचलित राजपूत शैली ही राजस्थानी चित्रकला कह्लाई राजस्थान चित्रशैली मुगल कला से प्राचीन व अत्यन्त समृद्ध है। यह राज्य के अनेक केन्द्रो पर विकसित हुई। परंतु इसका उद्गम स्थल मेवाड़ (मेदपाट) हैजहां राणा कुम्भा के समय  अपभ्रंश कला में स्‍थानीय लोक कला व मध्‍यदेशीय कला तत्‍वों के मिश्रण से एक नई  परम्परा आगे बढ़ी। कालांतर में राजस्थान की यही चित्रशैली अलग अलग रियासतों में विविधता के साथ पुष्पित हुई व मुगल कला  से समन्वय स्थापित कर परिमार्जित होने लगी। सत्रहवीं शताब्दी से मुगल साम्राज्य के प्रसार के फलस्वरूप राजपूत चित्रकला पर मुगल शैली का प्रभाव बढ़ने लगा।  17वीं शताब्दी और 18वीं शताब्दी के प्रारम्भिक काल को राजस्थानी चित्रकला का स्वर्णयुग माना जाता है। बाद में  अंग्रेजों के बढ़ते राजनीतिक दबदबे के कारण  राजस्थानी चित्रकला पर युरोपीय प्रभाव छा गया  ।
राजस्थानी चित्र शैलियों का वर्गीकरण
राजस्थानी कला को भौगोलिक एवं सांस्कृतिक आधार पर चार शैलियों में विभक्त कर सकते हैं
(1)  मेवाड़ शैली - चावण्डउदयपुरनाथद्वारा,प्रतापगढ देवगढ़ आदि।
(2)  मारवाड़ शैली - जोधपुरबीकानेरकिशनगढ़, नागोर आदि।
3)  हाड़ौती शैली - बूँदीकोटा झालावाड आदि।
(4)  ढूँढाड़ शैली (मेवात भी)  - आम्बेरजयपुरअलवरउणियाराशेखावटी आदि।
राजस्थानी चित्र शैलियों की सामान्‍य विशेषताएँ
(1)    जनजीवन की आशानुरूप विषयों के अंकित होने के कारण  यह शैली केवल दरबारी कला तक सीमित नही रही ।
(2)    हिन्‍दु धर्म और संस्कृति में पोषित चित्रकला में लोक कथाओं का बाहुल्यभक्ति और श्रृंगार का सजीव चित्रण तथा चमकदार और दीप्तियुक्त रंगों का संयोजन विशेष रूप से देखा जा सकता है ।
(3)    राजस्थानी शैली सिल्‍क व वसली(हाथ से बना कागज) के साथ साथ भित्ति चित्रों के रूप मेंं  यहाँ के महलोंकिलोंमंदिरों और हवेलियों में भी  दिखाई देती है ।
(4)    राजस्थानी चित्रकारों ने विभिन्न ऋतुओं व महीनों का चित्रण कर उनका मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का अंकन किया है ।
(5)    कालांतर में मुगल काल से प्रभावित राजस्थानी चित्रकला में दरबारी तड़क-भड़कविलासिताअन्तःपुर के दृश्य एवं झीने वस्त्रों का प्रदर्शन भी देखने को मिलता है ।
(6)    चित्र संयोजन में केन्‍द्रीयता का नियम माना गया है। चित्र में अंकित सभी वस्तुएँ विषय से सम्बन्धित रहती हैं और उसका अनिवार्य महत्त्व रहता है। इस प्रकार इन चित्रों में विषय-वस्तु एवं वातावरण का सन्तुलन बना रहता है। मुख्य आकृति एवं पृष्ठभूमि की समान महत्ता रहती है।
(7)    राजस्थानी चित्रकला में प्रकृति से मानव का गहरा सम्‍बन्‍ध  देखने को मिलता है। कलाकारों ने प्रकृति को जड़ न मानकर मानवीय सुख-दुःख से रागात्मक सम्बन्ध रखने वाली चेतन सत्ता माना है। चित्र में जो भाव नायक के मन में रहता हैउसी के अनुरूप प्रकृति को भी प्रतिबिम्बित किया गया है ।
(8)    )  मध्यकालीन राजस्थानी चित्रकला का कलेवर प्राकृतिक सौन्दर्य के आँचल में रहने के कारण अधिक मनोरम हो गया है ।
(9)    नारी सौन्दर्य को चित्रित करने में राजस्थानी चित्रशैली के कलाकारों ने विशेष काबिलियत दिखाई है ।

(10)गीत गोविन्‍द, राधा कृष्‍ण बारह मासा नायक नायिका भेद ढोला मारू शिकार आदि प्रिय विषय रहे हैं।

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