आदिमकला
हजारों वर्ष पूर्व मानव गुफाओं मेें रहता। जानवरों का शिकार कर अपनी भूख मिटाता। इन्ही गुफाओं की दिवारों पर आदि मानव ने अपने कला कौशल का परिचय कुरेद कर या फिर रेखाआें से सहजता के साथ अकिंत कर दिया था जो आज हमे हमारे पूर्वजों के जीवन की वास्तविकताओं से परिचित करवाता है।
प्रागैतिहासिक (प्राक् इतिहास अर्थात इतिहास से पहले का) काल का समय 5000 वर्ष ई0 पूर्व तक के काल को मानतें है। इस काल में मनुष्य ने पशुपालन कृषि आदि को अपनाया। परिवार की प्रथम अवधारणा बनी। पूरे विश्व में इस काल के अनेक चित्रावशेष मिलते हैं। भारत में प्राप्त चित्र अन्य देशों से प्राप्त चित्रों के समान महत्वपूर्ण है। (फ्रांस की लास्को गुफा, स्पेन की अल्तामिरा, अफ्रिका के एटलस पर्वत, सहारा मरुस्थल, आस्ट्रेलिया, साईबेरिया आदि के समान)
भारत मे प्राप्त प्रागैतिहासिक चित्र
भारत के महत्चपूर्ण प्रागैतिहासिक कालीन स्थल
- पूरे भारत वर्ष में आदिम कला के अवषेष कला के अवषेष प्राप्त हुए हैं। जिनमे भीमबेटका, पंचमढ़ी, होषंगाबाद, रामपुर, सिंहनपुर, मिर्जापुर, चक्रधरपुर, अलनिया (कोटा) विजयगढ़ वायनाड (एकडल) आदि महत्वपूर्ण है।
सिंहनपुर - छतीसगढ़ राज्य में रायगढ़ से 20 किलोमीटर दूर स्थित धोड़ा,बारहसींगा,हाथी,खरगोष,हिरण,छिपकली व जंगली भैंसे के वित्र बने है। जंगली भैंसे के षिकार का दृष्य व सामुहिक नृत्य का सुन्दर चित्र है।
होष्ंागाबाद - मध्यप्रदेष की राजधानी भोपाल से 70 किलोमीटर दूर स्थित है। यहा पर भागते हुए बारहसींगा, धुड़़सवार, भैंसा, साभ्ंार जिराफ, घनुर्घारी मानवोें का अंकन हुआ है। यहंा क्षेंपाकन (स्टेन्सिल प्रिटिंग) पद्धति का भी प्रयोग हुआ है।
चक्रधरपुर (बिहार)- यहां पर लेटे हुए मनुष्य का सुन्दर चित्रण है।
मिर्जापुर- उत्तरप्रदेष के विन्घयाचल पर्वत श्रृखंला मे स्थित मिर्जापुर मे अनेक गुफाएं व षिलाश्रय प्राप्त हुएं हैं। यहां की लिप्पुनिया गुफा में हाथी के आखेट (षिकार) का दृष्य, नर्तक, वादक व लम्बी चोंच वाले पक्षी अंकीत है। यहां विजयगढ़, खाडे़हवा, धोडमंगर, रौप आदि स्थानो पर आदिम कलावषेष सुरक्षित है।
पंचमढ़ी - मध्यप्रदेष स्थित पंचमढ़ी आदिमकला का महत्वपूर्ण केन्द्र है जो आजकल पर्यटन के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां अनेक गुफाएं स्थित हैं। इनमें बाजार केव मे बना बकरी का चित्र, मांडादेव मे बना शेर के ष्किार का दृष्य सुन्दर है। यहां शहद इकट्ठा करते, गाय चराते चरवाहे आदि की महत्वपूर्ण।
भीमबेटका- भोपाल (मध्यप्रदेष)से 40 किलोमीटर दूर है। प्रोफेसर वाकणकर ने यहां 500 गुफाओं की खोज की। यहां विष्व का कलावषेषों का भण्डार है। यहां से 8000 से 5000 ईसा पूर्व के चित्र हैं। यहां पहले प्रकार के चित्रों मे षिकार व जंगली जानवर है। जिनमें हाथी बारहसींगा सुअर हिरण आदि है। दुसरे प्रकार के मनुष्य का थोड़ा विकसित रुप ( खेतीहर, घुड़सवार, नर्तक) बना है।
आदिकालीन प्रमुख चित्र -
मरता हुआ भैंसा सिहनपुर - यहां पर भैंसे की घायलवस्था व पीड़ा का भावपुर्ण अकंन हुआ है। तीरों से घायल प्षु व उसके चारों ओर तीर-कमान व भालेें लिए षिकारी है।
जंगली भैंसे का शिकार(होशंगाबाद) - घुड़सवार व पैदल शिकारी एक भैंसे के पिछे दौड़ रहें है।
कराहता हुआ सुअर(मिर्जापुर) - किसी धारदार शस्त्र से घायल यह जानवर बहुत ही सरल व सहज ढंग से बनाया गया है लेकीन इसकी दर्दनाक स्थिति दर्शाने मे कलाकार सफल हुआ है। इस चित्र की तुलना स्पेन की कोगुल गुफा के चित्रों से होती है।
जादू टोने के चित्र - केरल के वायपाड एकडल में प्राप्त चित्रों में जादू टोने के चित्र अधिक हैं।
आदिम चित्रों की विषषताएं
चित्र रेखा प्रधान है।
चित्रों के आधार सरल व बालसुलभ है।
कोई नियम या सिद्धन्त नही है।
अभिव्यक्ति व सम्प्रेषणीयता श्रेष्ठ है।
कही-कही चित्रो में रंग भर दिए हैं।
विषय
शिकार के दृश्य
पशुओ की विभिन्न अवस्थाएं (दौड़ते,घायलवस्था आदि)
धुड़सवार, शहद इकट्ठा करते, नाच-गान आदि के दृश्य
जादुटाोना व तान्त्रिक विषय (स्वस्तिक,चक्र,त्रिशूल आदि)
कहीं भी प्राकृतिक दृश्य (पेड़-पौधे आदि)नही बने है।
रंग
खनिज रंगों का प्रयोग
लाल के लिए गरे,सफेद के लिए चुना पत्थर(खडि़या)
काले के लिए कोयला आदि। वनस्पतिक रंगों का प्रयोग नही हुआ है।
चित्रभूमि-
प्राकृतिक गुफाओें की दिवार,छत आदि।
उद्देश्य-
भाषा की कमी पूरा करने
अज्ञात शक्ति के प्रति आस्था दर्षाने
भय या जादू टोने के लिए
घटनाओं की स्मृति बनाये रखने के लिए
अकेलेपन को दूर करने के लिए(मनोरंजन के लिए)
योजना बनाने के लिए